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➤ज्ञानेन्द्रिय (Sense Organs)-

वैसे अंग जो हमे बाहरी वातावरण का आभास कराते है Sense Organs कहलाते है। 

इसकी कुल संख्या 5 होती है- 

1) नाक (Nose)-



नाक सुघने का कार्य करता है। इसमें Olfactory lobe पाया जाता है जो गन्ध को मस्तिष्क के कापौरा तक पहुँचाता है। 

2) आँख (Eye)-



यह देखने के काम में आता है। मानव का आँख उत्तल लेंस के भांति कार्य करता है। 

मानव आँख का सर्वाधिक अपवर्तनांक (चमकीला) भाग लेंस होता है। जब लेंस पर मांस की पतली झिली छा जाती है तो मोतिया बिन हो जाती है। 

प्रतिबिम्ब रेटिना पर बनता है जो वास्तविक, उल्टा बनता है। 

आँख के बाहर एक पतली झिली रहती है जिसे कोर्निआ कहते है। नेत्रदान के समय कोर्निआ को दान किया जाता है। 

➨आयरिश (Irish)-

यह काला, भूरा व् नीला रंग का होता है। यह आखो में जाने वाले प्रकाशी को नियत्रण करता है। अधिक तीव्रता के प्रकाश आने पर यह सिकुड़ जाता है। 

➨पुपिल्स (Pupils)-

यह काले रंग का होता है। इससे होकर प्रकाश अंदर की ओर प्रवेश करता है। 

➨स्क्लेरा (Sclera)-

यह आखो का सफेद वाला भाग है। 

➨एकवस हयूमरस-

यह एक द्रव है जो आयरिश तथा लेंस के बिच में रहता है। 

➨विक्ट्रेस हूयूमरस-

यह एक प्रकार का द्रव है जो लेंस व् रेटिना के बिच पाया जाता है। 

रेटिना के पीछे से प्रकाशी तंतु (Optical fibre) निकला रहता है। यह संदेश को मस्तिष्क तक भेजता है। 

इसमें दो प्रकार की नस होती है- 

1) बेलनाकार कोशिका (Rod Cell)-

यह प्रकाश के तीव्रता को दर्शाता है अथार्त इस बात की जानकारी देता है की प्रकाश तेज है या धीमा। 

2) शकुवाकार कोशिका (Conical Cell)-

यह वस्तु के रंग को बताता है। 

आँख में लेक्राइमल ग्रंथि पायी जाती है जो आंसू का निर्माण करती है। आंसू में lysoenzyme पाया जाता है। 

दृस्टि पर हमारे आँख का 1/10 sec. तक प्रभाव रहता है जिसे दृस्टि निर्बन्ध कहते है। 

टिपिडम लुसिडम के कारण जानवरो की आँख रात में चमकती है।  इसमें Zinc (Zn) पाया जाता है। 

रोडोप्सीन प्रोटीन के सेवन से रतौंधी बिमारी अच्छा हो जाता है। 

डाल्टोनिज्म (प्रोटोनोपिया) में लाल रंग नहीं दिखता है। 

रक्त वर्णाधता (Colour blindness) में लाल तथा हरा दोनों ही रंग स्पष्ट नहीं  दिखता है। 

Colour blindness की जांच के लिए Ishihira chart का प्रयोग करते है। 

Contect lens आँख में ही फिट कर दिया जाता है। इसकी खोज एडोल्फ ईगन फिक ने किया। 


3) जिभ (Tung)-



यह सयोजी उत्तक का बना होता है। इसका अगत भाग मीठा तथा पाष्च भाग तीखा का स्वाद कराता है जबकि अगत पाश्र्व नमकीन तथा पष्च वाला भाग खट्टा स्वाद को बताता है। 


4) कान (Ear)-



यह सुनने का कार्य करता है किन्तु इसका मुख्य कार्य संतुलन बनाना है। 

कान बाहरी भाग कर्ण पल्व (Pinna) कहलाता है। यह ध्वनि को ग्रहण करने का कार्य करता है। यह एक अवशेषी अंग है। 

कान के अंदर पतली झिली नुमा सरचना होती है जिसे कान का पर्दा या Ear Drum कहते है। इसी पर्दे पर ध्वनि तरंगो का कम्पन उत्तपन होता है। 

कान में तीन हड्डिया पाई जाती है-

1) मेलियस  2) इन्कस  3) स्टेप्स 

कान से एक नस मुँह से आई रहती है जब अचानक बम फूटता है तो मुँह खुल जाता है। जिस कारण मुँह से हवा प्रवेश कर जाती है और कान पर आने वाले दबाव को निष्क्रिय कर देती है। 


5) त्वचा (Skin)-



यह शरीर का सबसे बड़ा अंग है। यह शरीर को बाहरी आघात से बचाता है। त्वचा का अध्ययन Dermetalogy कहलाता है। 

त्वचा की दो परत होती है-

बाहरी परत को Epidermis कहते है जबकि आंतरिक परत को Dermis कहते है। 

चमड़े का समान डर्मिस का बना होता है। 

त्वचा में दो प्रकार की ग्रंथि पाई जाती है-

1) स्वेत ग्रंथि (Sweat gland)-

यह पसीने का निर्माण करती है। पसीना तथा आशु में Lyosozyme enzyme पाया जाता है। 

2) तैलिय ग्रंथि (Sebeceous gland)-

यह सिबम (चिप-चिपा पदार्थ) का निर्माण करती है। यह त्वचा को चिकना बनाय रखती है। 

सिबम सूर्य के प्रकश में Vit.D का निर्माण तेजी से करता है। 

नोट- बाल, नाख़ून, जानवरो के सिग कैरोटीन नामक प्रोटीन के बने होते है। 

त्वचा में मेलानिन पाया जाता है जो त्वचा के रंग को काला कर देता है। त्वचा एक उत्सर्जित अंग है। 


By Prashant


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